hindi kids stories jangal ki kahaniya
लोमड़ी और नगारा
एक थी लोमड़ी ।
एक दिन लोमड़ी को सुबह से कुछ भी खाने को नहीं मिला था ।उस वजह से वो जंगल में शिकार करने के लिए
इधर उधर भटक रही थी । उसी समय उसको एक आवाज सुनाई दी -
धुदुम धुदूम धुदम धूदुम…
ये आवाज सुनकर लोमड़ी डर गई ।
लोमड़ी को लगा ,कितना बड़ा आवाज है ये ! इससे तो सारा जंगल ही तहस महस हो जायेगा ! किसी नये प्राणी
का आवाज लगता है । यहां से भाग जाए इसमें ही भलाई है…
बाद में उसने सोचा ,की ऐसे दर के मारे भाग गए तो भूका ही मरना पड़ेगा । इससे तो अच्छा है कि हम
छूपछूप के देखते है कि ये जानवर कितना बड़ा है यही मेरे लिए उचित रहेगा ।वो शिकार करके जो भी कुछ
खाएगा उससे बचा हुआ खाना मुझे भी मिल सकता है। ऐसा सोच के लोमड़ी चुप चुप के जिस दिशा में आवाज
आइ उस दिशा में चलने लगी । थोड़ा सामने जाने के बाद उसने दूर से ही देखा _
एक पेड़ के नीचे एक बहोत बड़ा नगारा पड़ा हुआ था ।उस पेड़ की टहनियां नीचे झुकी हुई थी । जब हवा आती
थी
तब टहनियां हिलती थी । वो हिलने वाली टहनियां नगारा पर जोर से लगती थी और आवाज आता था_ढूदुम
धूदूम धूदूम धूदूम…
नगारे को दुंदुभी भी कहा जाता है । युद्ध के लिए सैनिक दुंदुंभी बजाते थे ।पहले कभी यह पर युद्ध हुआ होगा ।
और ये नगारा यही रह गया होगा ।
लोमड़ी एक पेड़ के पीछे छुप के वो नगारा बारकाई से
देख रही थी ।
लोमड़ी को लगा _
यहां ज्यादा देर तक रुकना उचित नहीं है । ये इतना बड़ा जानवर मुझे देखते ही मेरी शिकार कर देगा ।अब ये
जंगल छोड़कर ही मुझे दूसरी तरफ कहीं जाना पड़ेगा ।
फिर उसके मन में विचार आया कि ये जंगल तो मेरी मातृभूमि है में मेरी मातृभूमि को छोड़कर दूसरी जगह क्यू
जाऊ ?
मेरी मा कहती थी ,संकट आने पर कोई भी निर्णय
जेल्दबाजी में नहीं लेना चाहिए ।तब उसे लगा कि इस प्रचंड जानवर के पास जाकर उसे आजमा कर देखते है।
लोमड़ी डरते हुए उस नगारे के पास पहुच गई ।उसने सोचा कि , मुझपर हमला करने के लिए ये जानवर जब
अपना पंजा उठायेगा , तब मै यहां से जल्द ही भाग जाऊंगी । लेकिन उस जानवर ने कुछ भी हलचल नहीं की ।
अब तो लोमड़ी उस जानवर के अधिक नजदीक पहुंची । फिर भी उस जानवर ने कुछ भी हलचल नहीं की ।
लोमड़ी को लगा कि जरा उस जानवर को हाथ लगाके देखलू ।
लोमड़ी ने अपना पंजा आगे करके हल्के से उस नगारे पर फटका मारा…
उससे आवाज आइ धुदुम् …
उस आवाज के वजह से लोमड़ी कुछ पैर पीछे गई ,और बाद में फिर सामने आइ ।
लोमड़ी को लगा कि ,इस जानवर की चमड़ी इतनी जड है और ये जानवर इतना बड़ा है ।तो इसके शरीर में
कितना सारा खून - मास होगा ! उसके मुंह में पानी आ गया ।
लोमड़ी बड़े रूबाब से उस नगारे पर चढ़ी और चमडा
दातो से तोड़ने का प्रयास करने लगी ; लेकिन कुछ भी करने से वो उस चमड़े को तोड नहीं पा रहा था ।
लोमड़ी को लगा कि इतना बड़ा जानवर होने के बावजूद भी ये कितना असहय है ! हमला भी नहीं कर सकता
बिचारा |
चमड़ी फाड़ने के लिए लोमड़ी जोरजोर से चबाने लगी ।चमडा तो फटा नहीं ही ; लेकिन लोमड़ी का एक दात तुट
गया ।और उसमे से खून बहने लगा ।लोमड़ी को बहुत घुस्सा आया । उसने चमड़े का लचका तोड़ने के लिए
अपनी पूरी शक्ति और जोर लगाया ।
आखिर चमडा फट गया । उसके बाद वो सारा चमडा फड़ना काफी कठिन नहीं था । लोमड़ी को बहुत आश्चर्य
हुआ । की चमड़ी तो फटी लेकिन खून का एक भी बूंद नहीं है ।लोमड़ी उस नगारे के अंदर गई । अंदर ही सब
खुला था !सब कुछ रिकामा था !
लोमड़ी ने चैन की सास लि ।वो बहुत निराश हो गई थी।
लोमड़ी को खाने के लिए तो कुछ भी नहीं मिला लेकिन उसे अपना एक दात गवाना पड़ा।
फिर से हवा चलने लगीं । टहनियां हिलने लगी। उस नगारे पर जोर से लगने लगी ।लेकिन पहले जैसी
आवाज नहीं आइ ।
आवाज नहीं आइ ।
लोमड़ी को लगा कि ,मेरा दात भालेही टूट गया हो ;लेकिन मेरे मन में कोई डर तो नहीं रहा ।इतने बड़े जानवर का चमडा मैंने फाड़ दिया ।
अब लोमड़ी को अपने आप पर ही गर्व होने लगा ।
लोमड़ी ने गर्व से अपनी मान उची की ।और बड़े ही रूबाब से अपना शरीर तान लिया और उसके बाद वो फिर
से शिकार के लिए निकल पड़ा...
सिख : संकट कैसा भी हो उसका सामना डट के करना चाहिए
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