शंकर भोले ने सिखाया दृष्ट राजा को सबक। Bhgvan shankar ne sikhaya drisht raja ko sabak


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( Bhgvan shankar ne sikhaya drisht raja ko sabak) 

    शंकर भोले ने सिखाया दृष्ट राजा को सबक।


:  कई वर्ष पहिले सुंदरबन जंगल के बगल में एक गांव था

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उस गांव का नाम था आनंद गांव ,वाह एक समीर  नाम का राजा रहता था राजा बोहोत हुशार था ,ओर चालक

भी था अपने प्रजा से प्यार भी करता था उसका एक साथी था उसका नाम अमित था ,अमित उसको हमेशा से ही 

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सच्चाई के रास्ते पे चलने की सलाह देता था और प्रजा के लिए जो अच्छा बन सखे करता था,




इसीलिए राजा भी उसको लेके खुश था ,एक दिन राजा को पता चला कि अपने बाजू वाले गांव के राजा की मौत

हो गई तो ,उसके मन लालच आई कि क्यों में उस गांव को भी जीत कर उसपे भी राज करु ओर अगर में जीत 

गया तो रानी इंदुमती से भी शादी कर लूंगा जो कि में चाहता था ये बात राजा समीर ने उनके साथी अमित को 

बताई तो अमित को राजा की ये बात बिल्कुल भी अछि नही लगी ,ओर अमित ने राजा से कहा

अमित: राजा समीर जी ये उचित नही है इस संकट में हमे उस गांव को सहारा देना चाहिए और जो राजा मर

गया उनके भाई को ही वाह का अगला राजा घोषित करना चाहिए ,

ओर रही रानी इंदुमती की बात तो ये सरासर गलत बात है

राजा समीर: प्रधान सेवक अमित मेने तुम्हें भाषण देने के लिए नही बुलाया मेने तुम्हें ये बताने के लिए बुलाया

है कि में उस गांव पे हमला कर के उस राजा के भाई के साथ युद्ध करने के लिए तैयार हूं ,ओर इंदुमती रानी से 

शादी करने के लिए भी तैयार हूं

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जाओ उस राजा (राजा उबैद) के भाई ( नियाज) को पत्र लिख कर ये जानकारी दो की हम उसके साथ युद्ध करना

चाहते है और उसके लिए तैयार रहे।

अमित ने राजा की बात मान कर राजा के भाई नियाज को पत्र लिखा और ओर पूरी जानकारी दी ,पत्र पढ़ कर

नियाज का खून खोल उठा और उसने भी जवाब में युद्ध की घोषणा कर दी ,

लेकिन राजा (उबैद)  की पत्नी इंदुमती को येबात  रास नहीं आई और जोर जोर से रोने लगी,उसे ओर यकीन 

था कि राजा समीर से नियाज हार जाएंगे,क्यों कि राजा समीर के पास युद्ध जितने की कला थी और ढेर सारी 

शक्तिया थी ,ओर भगवान शिव के बोहोत बढ़े भक्त थे ,वही दूसरी ओर नियाज इतने निपुण नहीं थे ,इसी

लिए रानी इंदुमती को बोहोत ही चिंता सताने लगी कि अब क्या होगा (ओर ये सब ऊपर से भगवान शंकर जी

देख रहे थे)

इस सब पर उपाय ढूंढने के लिए रानी इंदुमती ने ,पंडित को बुलाया और पूछा ,तो पंडित ने सलाह दी कि आप

सुंदरबन के जंगल मे साग के पेड़ के नीचे आचार्य धीरज बैठे मिलेंगे ही आप की मदत कर सकते है।

दूसरे दिन इंदुमती सुंदरबन जंगल मे गयी और आचार्य धीरज से मिली ,

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इंदुमती आचार्य से

इंदुमती: आचार्य में बोहोत चिंतित हु ,परेशान हु( इतना बोलने ही जा रही थी तो आचार्य ने बीच मे उनको रोका

ओर बोले)

आचार्य: रानी इंदुमती मुझे सब पता है कि राजा समीर ने युद्ध की घोषणा की है ,ओर आपसे शादी करना

चाहता है

ओर आप को ये सभ अच्छा नही लग रहा और आपको उनसे शादी नही करनी है क्यों कि आप राजा उबैद से

प्यार कर थी और ,आप ये भी  चाहती कि नियाज भी बच जाए और आपका साम्राज्य भी बच जाए।

इंदुमती: हा  आचार्य

आचार्य: में जितना बोलूंगा उतना करो ,राजा को तुम अपने हात से खुद पत्र लिखो ओर बोलो की अगर आपको

मुझसे शादी करना है तो जाओ पहिले सुंदरबन जंगल मे आचार्य धीरज से मिल के आओ ,फिर में आपके साथ

शादी करूँगी।

इंदुमती ने पत्र लिखा राजा समीर को


पत्र पढ़ने के बाद राजा समीर जोर जोर से हँसने लगे

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राजा : देखा प्रधान सेवक अमित राजा समीर की बात को कोई भी ठुकरा नही सकता रानी इंदुमती भी मान गई।

सिर्फ मुझे बोला गया कि सुंदरबन में आचार्य धीरज से मिलो

ये सुनकर अमित को कुछ खतरे की आहट हुई और राजा से बोला ,राजा रुको सुंदरबन में तो ऐसा कोई 

आचार्य नही है

ये अचानक कहा से आचार्य गया ,मुझे तो कुछ गड़बड़ लग रही है।

राजा समीर: (जोर जोर से हस हस के )

अमित में अमर हु अमर मुझे कोई नही मार सकता ,मुझसे लोग डरते है (जोर जोर से हँसने लगा)

ओर सुंदरबन की ओर निकल गया

राजा सुंदरबन में पोहचा।

आचार्य धीरज साग के नीचे बैठे थे

राजा आचार्य से

राजा: अरे ये आचार्य क्या तूने मुझे बुलाया है

आचार्य : हा

राजा : तो बोलो क्यों बुलाया

आचार्य: राजा आप क्यों इंदुमती से शादी करना चाहते हों,ओर क्यों आप उस गांव को जितना चाहते हो ,आप के

पास तो सब है

राजा : हस हस के अरे आचार्य मुझे रानी इंदुमती चाहिए और में उसे पा कर ही रहूंगा

आचार्य: लेकिन तुमसे प्यार नही करती

राजा: अरे दृष्ट ढोंगी आचार्य तुम बीच मे मत पड़ो

आचार्य: अगर तुम को युद्ध करना है तो ,तुम्हें पहिले मुझसे युद्ध करना पड़ेगा

राजा : हस हस के बोला अरे ये में अमर हु ओर में भगवान शिव का भक्त हु मुझे कोई नही मार सकता। हा हा हा हा हा हा हा हा

जोर जोर से हँसने लगा।

ओर अचानक जोर जोर से हवा चलने लगी ,बिजली कड़कने लगी

तेज बारिश होने लगी,

ओर अचानक आचार्य ने भगवान शिवजी का अवतार धारण कर लिया

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भगवान शिव: मैं भगवान शिव हु ,मुझे जान बूझ कर आचार्य का वेश धारण करना पड़ा।

राजा समीर :पूरा घाम से लतपत शिवजी मुझे माफ़ करदो मुझे माफ़ करदो मैं ऐसा नही करूँगा ,में कभी बिन कारण युद्ध नही करूँगा

भगवान शिव : नही राजा में आपकी पूरी शक्तिया वापस ले रहा हु ओर आपको जो भी वरदान दिए भी में वापस ले चुका हूं

ये ही आपकी शिक्षा है

ओर शिव जी वाह से चले गए।

दूसरे दिन युद्ध हुवा ओर नियाज युद्ध जीत गया

ओर राजा समीर को मार दिया

नियाज को सिर्फ अपना गांव मिला बल्कि

राजा समीर के गांव पे भी कब्जा किया और वाह पे भी अच्छेसे राज किया।

सिख: घमंड करनेसे जो अपने पास है ओ भी नही बचता।


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